सबका मंगल सबका भला हो ! गुरु चाहना ऐसी है !!इसीलिए तो आए धरा पर सदगुरु आसारामजी है !!
स्नातं तेन सर्व तीर्थम् दातं तेन सर्व दानम् कृतो तेन सर्व यज्ञो.....उसने सर्व तीर्थों में स्नान कर लिया, उसने सर्व दान दे दिये, उसने सब यज्ञ कर लिये जिसने एक क्षण भी अपने मन को आत्म-विचार में, ब्रह्मविचार में स्थिर किया।

Friday, October 22, 2010

गुरु वंदना

गुरु वंदना
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥
मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँजो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥
चौपाई :
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥
मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँजो सुरुचि (सुंदर स्वाद)सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण हैजो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥
वह रज सुकृति (पुण्यवान्‌ पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी हैभक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥
श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥
श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान हैजिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला हैवह जिसके हृदय में आ जाता हैउसके बड़े भाग्य हैं॥
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं 

चौपाई :
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन हैजो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है।

साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥
संतों का चरित्र कपास के चरित्र (जीवन) के समान शुभ हैजिसका फल नीरसविशद और गुणमय होता है। (कपास की डोडी नीरस होती हैसंत चरित्र में भी विषयासक्ति नहीं हैइससे वह भी नीरस हैकपास उज्ज्वल होता हैसंत का हृदय भी अज्ञान और पाप रूपी अन्धकार से रहित होता हैइसलिए वह विशद है और कपास में गुण (तंतु) होते हैंइसी प्रकार संत का चरित्र भी सद्गुणों का भंडार होता हैइसलिए वह गुणमय है।) (जैसे कपास का धागा सुई के किए हुए छेद को अपना तन देकर ढँक देता हैअथवा कपास जैसे लोढ़े जानेकाते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढँकता हैउसी प्रकार) संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढँकता हैजिसके कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है॥

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