श्रष्टि के आरंभ में जब पृथ्वी समुद्र मे डूबी जा रही थी तब पृथ्वी ने भगवान से प्रार्थना की – “हे जगतप्रभो ! आप संपूर्ण विश्व के स्वामी है | देवेश ! आप मुझ पर प्रसन्न होइए | माधव ! भक्तिपूर्वक मै आपकी शरण में पहुँची हूँ, आप कृपा करें | सूर्य, चंद्रमा,यमराज और कुबेर – इन रूपों में आप ही विराजमान है | इंद्र, वरुण, अग्नि, पवन, क्षर-अक्षर, दिशा और विदिशा आप ही हैं | हजारों युग युगांतरों के समाप्त हो जाने पर भी आप सदा एकरस स्थित रहते हैं | पृथ्वी-जल-तेज-वायु और आकाश-ये पाँच महाभूत तथा शब्द-स्पर्श-रूप-रस और गंध- ये पाँच विषय आपके ही रूप हैं | ग्रहोंसहित संपूर्ण नक्षत्र तथा कला, काष्ठा और मुहूर्त आपके ही परिणाम हैं | सप्तर्षिवृंद, सूर्य-चन्द्र आदि ज्योतिश्चक्र और ध्रुव- इन सबमें आप ही प्रकाशित होते हैं | मास-पक्ष, दिन-रात, ऋतु और वर्ष- ये सब भी आप ही हैं | नदियाँ, समुद्र, पर्वत तथा सर्प आदि जीवों के रूप में परम प्रसिद्ध आप ही सत्तावान हैं | मेरू-मंदराचल, विंध्य, मलय-दूर्दुर, हिमालय, निषध आदि पर्वत और प्रधान आयुध सुदर्शन चक्र – ये सब आपके ही रूप हैं | आप धनुषों में शिवजी के धनुष –‘पिनाक’ हैं, योगों में उत्तम ‘सांख्य’ योग हैं | लोकोंके लिए आप परम परायण भगवान श्रीनारायण हैं | यज्ञों में आप ‘महायज्ञ’ हैं और यूपों (यज्ञस्तंभों) में आप स्थिर रहनेकी शक्ति हैं | वेदों में आपको ‘सामवेद’ कहा जाता है | आप महाव्रतधारी पुरुषके अवयव वेद और वेदांग हैं | गरजना, बरसाना आपके द्वारा ही होता है | आप ब्रह्मा हैं | विष्णो! आपके द्वारा अमृत का सृजन होता है, जिसके प्रभाव से जनता जीवन धारण कर रही है
श्रद्धा-भक्ति, प्रीति, पुराण और पुरुष भी आप ही है | धेय और आधेय-सारा जगत, जो कुछ इस समय वर्तमान है, वह आप ही हैं | सातों लोकोंके स्वामी भी आपको ही कहा जाता है | काल, मृत्यु, भूत, भविष्य, आदि-मध्य-अंत, मेधा-बुद्धि और स्मृति आप ही हैं | सभी आदित्य आपके ही रूप हैं | युगों का परिवर्तन करना आपका ही कार्य है | आपकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती, अतः आप अप्रमेय हैं | आप नागों में ‘शेष’ तथा सर्पों में ‘तक्षक’ हैं | उद्वह-प्रवह, वरुण और वारुण रूप से भी आप ही विराजते हैं | आप ही इस विश्वलीला के मुख्य सूत्रधार हैं | सभी गृहों में गृहदेवता आप ही हैं | सबके भीतर विराजमान, सबके अंतरात्मा और मन आप ही हैं | विद्युत और वैद्युत एवं महाद्युति - ये आपके ही अंग हैं | वृक्षों में आप वनस्पति तथा आप सतक्रियाओं में श्रद्धा हैं | आप ही गरुड बनकर अपने आत्मरूप (श्रीहरि) को वहाँ करते हैं और उनकी सेवामें परायण रहते हैं | दुंदुभी और नेमिघोष से जो शब्द होते हैं, वे आपके ही रूप हैं | निर्मल आकाश आपका ही रूप हैं | आप ही जय और विजय हैं | सर्वस्वरूप, सर्वव्यापी, चेतन और मन भी आप ही हैं | ऐश्वर्य आपका स्वरूप है | आप पर एवं परात्मक हैं | विष एवं अमृत भी आपके ही रूप हैं | जगद्वंध्य प्रभो ! आपको मेरा बारम्बार प्रणाम है | लोकेश्वर! मैं डूबी जा रही हूँ, आप मेरी रक्षा करें | ”
यह भगवान केशव की स्तुति है | व्रतमें दृढ़ स्थिति रखनेवाला जो पुरुष इसका पाठ करता है, वह यदि रोगों से पीड़ा पा रहा हो तो उसका दुःख दूर हो जाता है | यदि बंधन में पड़ा हो तो उससे उसकी मुक्ति हो जाती है | अपुत्री पुत्रवान बन जाता है | दरिद्र को संपत्ति सुलभ हो जाती है | विवाह की कामना वाले अविवाहित व्यक्ति का विवाह हो जाता है | कन्या को सुंदर पति प्राप्त होता है | महान प्रभु भगवान माधव की इस स्तुति का जो पुरुष सायं और प्रातः पाठ करता है वह भगवान विष्णु के लोक में चला जाता है | इस विषय में कुछ भी अन्यथा विचार नहीं करना चाहिए | भगवान की कही हुई ऐसी वाणी की जब तक परिचर्चा होतो रहती है, तब तक वह पुरुष स्वर्गलोक में सुख पाता है | (श्रीवराहपुराण, अध्याय 113)
भयनाशन दुर्मतिहरण, काली में हरि को नाम !
निश दिन नानक जो जपे, सफल होवई सब काम !!
हरि हरि ओ................म..........................
हरि हरि ओ................म..........................
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