सबका मंगल सबका भला हो ! गुरु चाहना ऐसी है !!इसीलिए तो आए धरा पर सदगुरु आसारामजी है !!
स्नातं तेन सर्व तीर्थम् दातं तेन सर्व दानम् कृतो तेन सर्व यज्ञो.....उसने सर्व तीर्थों में स्नान कर लिया, उसने सर्व दान दे दिये, उसने सब यज्ञ कर लिये जिसने एक क्षण भी अपने मन को आत्म-विचार में, ब्रह्मविचार में स्थिर किया।

Friday, October 22, 2010

उद्धवजी कृत गोपी स्तुति

इस पृथ्वी में केवल इन गोपियों का ही जन्म ही सफल है क्योंकि ये सर्वात्मा गोविंद भगवान के ऊपर परम प्रेम प्रेम करने वाली है जिस प्रेम को संसार से भयभीत मुनि, मुमुक्षु, मुक्त और हम भक्त लोग भी चाहते हैं भगवान की कथा में प्रेम रखने वाले प्राणी की ब्राह्मण जन्मों से क्या विशेषता हो सकती है? जहाँ कहीं वह पैदा हुआ सर्वोत्तम ही है

भला जंगल में विचरने वाली ये स्त्रियाँ कहाँ ? और इंका यह भगवान में निरंतर प्रेम कहाँ ? सच है ईश्वर भजन करने वाले अज्ञानी के ऊपर भी अपने आप अनुग्रह करते है
देखो यदि अमृत का सेवन, उसके प्रभाव को न जानने वाला भी करे तो भी वह अमर हो जाता है

अहो! इन गोपियों की चरणरज को सेवन करने वाली वृंदावन में उत्पन्न हुई गुल्म, लता और औषधियों में से कुछ भी मैं हौंऊ, क्योंकि इनहोने दुस्त्यज अपने बंधव और कुल की श्रेष्ठ रीतियों को त्यागकर श्रीक़ृष्ण भगवान का भक्तिमार्ग पाया, जिसको श्रुतियाँ भी ढूँढा करती हैं
जिन चरणकमल की लक्ष्मीजी, आप्तकाम ब्रह्मादि देवता और योगेश्वर अपने हृदय में पुजा करते है, उन श्रीक़ृष्णजी के चरण कमलों को जिन गोपियों ने रासक्रीड़ा में अपने वक्षस्थल में रखा था और उसका आलिंगन करके अपना ताप दूर किया था, ऐसी गोपियों के चरण कमलों को मैं नमस्कार करता हूँ

नंदजी के वृज की स्त्रियों की चरणरेणु को पुनः पुनः नमस्कार करता हूँ, जिनका भगवान की लीलाओं का गान तीनों भुवनों को पवित्र करता है
(श्रीमदभागवत स्कन्ध 10, अध्याय 47)

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