अजपा गायत्री
ऐसा सुमिरन कीजिये, सहा रहै लौ लाय ।
बिनु जिभ्या बिन तालुवै, अन्तर सुरत लगाय ॥1॥
हंसा सोहम तार कर, सुरति मकरिया पोय ।
उतार उतार फिरि फिरि चढ़ै, सहजों सुमिरन होय ॥2॥
बरत बांध कर धरन में, कला गगन में खाय ।
अर्ध उर्ध नट ज्यौं फिरै, सहजों राम रिझाय ॥3॥
लगे सुन्न में टकटकी, आसान पदम लगाय ।
नाभि नासिका माहिं करि, सहजों रहै समाय ॥4॥
सहज स्वांस तीरथ बहै, सहजो जो कोई न्हाय ।
पाप पुन्न दोनों छुटै, हरि पद पहुँचै जाय ॥5॥
हक्कारे उठि नाम सूँ, सक्कारे होय लीन ।
सहजों अजपा जाप यह, चरनदास कहि दीन ॥6॥
सब घट अजपा जाप है, हंसा सोहम पुर्ष ।
सुरत हिये ठहराय के, सहजों या विधि निर्ख ॥7॥
सब घट व्यापक राम है, देही नाना भेष ।
राव रंक चांडाल घर, सहजों दीपक एक ॥8॥
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गुरु पूरे पाये ....
नमो नमो गुरु तुम सरना ।
तुम्हारे ध्यान भरम भय भागै, जीते पांचौ और मना ॥1॥
दुख दारिद्र मिटै तुम नाउँ, कर्म कटै जो होहिं घना ।
लोक परलोक सकाल बिधि सुधरै, पग लागै आय ज्ञान गुना ॥ 2॥
चरण छूए सब गति मति पलटे, पारस जैसे लोह सुना ।
सीप परसि स्वाति भयो मोती, सोहट है सिर राज रना ॥ 3॥
ब्रह्म होय जीव बुधि नासै, जब कैसे होना मरना ।
अमर होय अमरापद पावै, यह गुर कहिए गुरु बचना ॥4॥
चरणदास गुरु पूरे पाये, जग का दुख सुख क्यों सहना ।
सहजों बाई ब्याध छुटाकर, आनंद मंगल में रहना ॥5॥
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