सबका मंगल सबका भला हो ! गुरु चाहना ऐसी है !!इसीलिए तो आए धरा पर सदगुरु आसारामजी है !!
स्नातं तेन सर्व तीर्थम् दातं तेन सर्व दानम् कृतो तेन सर्व यज्ञो.....उसने सर्व तीर्थों में स्नान कर लिया, उसने सर्व दान दे दिये, उसने सब यज्ञ कर लिये जिसने एक क्षण भी अपने मन को आत्म-विचार में, ब्रह्मविचार में स्थिर किया।

Sunday, November 21, 2010

गुरु पूरे पाये, जग का दुख सुख क्यों सहना !

अजपा गायत्री

ऐसा सुमिरन कीजिये, सहा रहै लौ लाय ।
बिनु जिभ्या बिन तालुवै, अन्तर सुरत लगाय ॥1

हंसा सोहम तार कर, सुरति मकरिया पोय ।
उतार उतार फिरि फिरि चढ़ै, सहजों सुमिरन होय ॥2

बरत बांध कर धरन में, कला गगन में खाय ।
अर्ध उर्ध नट ज्यौं फिरै, सहजों राम रिझाय ॥3

लगे सुन्न में टकटकी, आसान पदम लगाय ।
नाभि नासिका माहिं करि, सहजों रहै समाय ॥4

सहज स्वांस तीरथ बहै, सहजो जो कोई न्हाय ।
पाप पुन्न दोनों छुटै, हरि पद पहुँचै जाय ॥5

हक्कारे उठि नाम सूँ, सक्कारे होय लीन ।
सहजों अजपा जाप यह, चरनदास कहि दीन ॥6

सब घट अजपा जाप है, हंसा सोहम पुर्ष ।
सुरत हिये ठहराय के, सहजों या विधि निर्ख ॥7

सब घट व्यापक राम है, देही नाना भेष ।
राव रंक चांडाल घर, सहजों दीपक एक ॥8॥ 
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गुरु पूरे पाये ....

नमो नमो गुरु तुम सरना ।
तुम्हारे ध्यान भरम भय भागै, जीते पांचौ और मना ॥1

दुख दारिद्र मिटै तुम नाउँ, कर्म कटै जो होहिं घना ।
लोक परलोक सकाल बिधि सुधरै, पग लागै आय ज्ञान गुना ॥ 2

चरण छूए सब गति मति पलटे, पारस जैसे लोह सुना ।
सीप परसि स्वाति भयो मोती, सोहट है सिर राज रना ॥ 3

ब्रह्म होय जीव बुधि नासै, जब कैसे होना मरना ।
अमर होय अमरापद पावै, यह गुर कहिए गुरु बचना ॥4

चरणदास गुरु पूरे पाये, जग का दुख सुख क्यों सहना ।
सहजों बाई ब्याध छुटाकर, आनंद मंगल में रहना ॥5

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