सबका मंगल सबका भला हो ! गुरु चाहना ऐसी है !!इसीलिए तो आए धरा पर सदगुरु आसारामजी है !!
स्नातं तेन सर्व तीर्थम् दातं तेन सर्व दानम् कृतो तेन सर्व यज्ञो.....उसने सर्व तीर्थों में स्नान कर लिया, उसने सर्व दान दे दिये, उसने सब यज्ञ कर लिये जिसने एक क्षण भी अपने मन को आत्म-विचार में, ब्रह्मविचार में स्थिर किया।

Saturday, November 13, 2010

श्री गीतगोविंद - दशावतार स्तुति

हे जगदीश ! मत्स्यावतार लेकर वेदों का उद्धार करने वाले,
कूर्मावतार से जगत को धारण करने वाले,
वराह अवतार से पृथ्वी मण्डल को धारण करने वाले,
नृसिंहरूप धारण कर हिरण्यकस्यपु का वाढ करने वाले,
वामनावतार से बाली को छलने वाले,
परशुराम रूप से क्षत्रियों का नाश करने वाले,
रामावतार लेकर रावण का विनाश करने वाले,
बलरामावतार में हल धारण करने वाले,
बुद्धावतार में दया का विस्तार करने वाले,
कल्की अवतार धारण कर म्लेच्छ का संहार करने वाले
(इस प्रकार दश विधि अवतारधारी)
श्रीकृष्णचंद्र को प्रणाम है।
हे सूर्यमण्डल के आभूषण !
(अर्थात सूर्य में जो तेज है वह आपही का है)
हे सांसारिक दुःख का विनाश करने वाले
(अर्थात संसार का आवागमन मिटानेवाले),
हे मुनिजनों के मानस (चित्त) के हंस स्वरूप !
हे देव!, कालिय नाम सर्पराज के मद को नष्ट करनेवाले!
भक्तजनों के आनंददाता !
हे यदुकुलरूपी कमल के सूर्य !
हे मधु और मुरनरक नामक असुरों के विनाशक!
हे गरुड़वाहन!
हे देवताओं की क्रीडा आदि के कारण!
हे निर्मल कमल के पत्र के समान विशाल नेत्रोंवाले!
हे संसार रूपी जाल से छुड़ानेवाले !
हे त्रिलोकी रूप गृह के निधान स्वरूप !
हे जानकीजी से आभूषित !
हे दूषण नाम राक्षसराज के संहारक!
हे रण में रावण को शांत करने वाले,
नवीन मेघ के सदृश सुंदर !
हे मंदराचल को धारण करनेवाले !
हे लक्ष्मी के मुखरूपी चंद्रमा के चकोर !
हे देव ! हम लोग आपके चरणों में प्रणाम करते हैं ।
यह आप जानिए और प्रणत हम लोगों का कल्याण करें !
आपकी जय हो ! हे देव ! हे हरे ! आपकी जय हो !
श्री जयदेव कवि का बनाया हुआ, मंगलकारी मनोहर गीत श्रवण या पढ़नेवालों को आनंद दाता है । (श्री गीतगोविंद द्वितीय प्रबंध)

1 comment:

  1. श्री जयदेव कवि का यह मंगलकारी मनोहर गीत पढ़कर अच्छा लगा |

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