||ॐ श्रीपरमात्मने
नम:||
प्रश्नोत्तरी
(स्वामी
श्रीशंकराचार्यरचित ‘मणिरत्नमाला’)
श्रीस्वामी
शंकराचार्य जी की प्रश्नोत्तर-मणिमाला
बहुत ही उपादेय पुस्तिका है | इसके
प्रत्येक प्रश्न और उत्तर पर मनन पूर्वक
विचार करना आवश्यक है | संसार में स्त्री, धन और पुत्रादि पदार्थों के कारण ही
मनुष्य विशेष रूप से बन्धन में रहता है, इन पदार्थों से वैराग्य होने में ही
कल्याण है, यही समझकर उन्होंने स्त्री, धन और पुत्रादि की निन्दा की है | स्त्री
के लिए विशेष जोर देने का कारण भी स्पष्ट
है | धन, पुत्रादि छोडने वाले भी प्राय: स्त्रियों में आसक्त देखे जाते हैं,
वास्तव में यह दोष स्त्रियों का नहीं है, यह दोष तो पुरुषों के बिगड़े हुए मन का
है; परन्तु मन बड़ा चंचल है, इसलिए संन्यासियों
को स्त्रियों से हर तरह से अलग ही रहना चाहिए | जान पड़ता है कि यह पुस्तिका
खासकर संन्यासियों के लिए ही लिखी गयी थी | इसमें बहुत सी बातें ऐसी हैं जो सभी के
काम की हैं | अत: उनसे हम लोगों को पूरा लाभ उठाना चाहिए | स्त्री, पुत्र, धन आदि संसार के सभी पदार्थों
से यथासाध्य ममता का त्याग करना आवश्यक है |
अपार
संसार समुद्र मध्ये
निमज्जतो
मे शरणं किमस्ति ।
गुरो
कृपालो कृपया वदैत-
द्विश्वेश
पादाम्बुज दीर्घ नौका ॥ १॥
प्रश्न
:- हे दयामय गुरुदेव ! कृपा करके यह बताइये कि अपार संसाररूपी समुद्र में मुझ
डूबते हुए का आश्रय क्या है ?
उत्तर
:- विश्वपति परमात्मा के चरणकमलरूपी जहाज |
बद्धो
हि को यो विषयानुरागी
को
वा विमुक्तो विषये विरक्तः ।
को
वाऽस्ति घोरो नरकः स्वदेह-
स्तृष्णाक्षयः
स्वर्ग पदं किमस्ति ॥ २॥
प्रश्न
:- वास्तव में बँधा कौन है ?
उत्तर:-
जो विषयों में आसक्त है |
प्रश्न
:- विमुक्ति क्या है?
उत्तर:-
विषयों से वैराग्य |
प्रश्न
:- घोर नरक क्या है ?
उत्तर:-
अपना शरीर |
प्रश्न
:- स्वर्ग का पद क्या है ?
उत्तर:-
तृष्णा का नाश होना |
संसार
हृत्क:श्रुतिजात्म बोधः
को
मोक्ष हेतुः कथितः स एव ।
द्वारं
किमेकं नरकस्य नारी
का
स्वर्गदा प्राणभृतामहिंसा ॥ ३॥
प्रश्न
:- संसार को हरने वाला कौन है ?
उत्तर:-
वेद से उत्पन्न आत्मज्ञान |
प्रश्न
:- मोक्ष का कारण क्या कहा गया है ?
उत्तर:-
वही आत्मज्ञान |
प्रश्न
:- नरक का प्रधान द्वार क्या है ?
उत्तर:-
नारी |
स्वर्ग
को देने वाली क्या है ?
उत्तर:-
जीवमात्र की अहिंसा |
शेते
सुखं कस्तु समाधिनिष्ठो
जागर्ति
को वा सदसद्विवेकी ।
के
शत्रवः सन्ति निजेन्द्रियाणि
तान्येव
मित्राणि जितानि कानि ॥ ४॥
प्रश्न
:- (वास्तव में) सुख से कौन सोता है ?
उत्तर:-
जो परमात्मा के स्वरूप में स्थित है |
प्रश्न
:- और कौन जगता है ?
उत्तर:-
सत् और असत् के तत्त्व का जानने वाला |
प्रश्न
:- शत्रु कौन हैं ?
उत्तर:-
अपनी इन्द्रियाँ; परन्तु जो जीती हुई हों तो वही मित्र हैं |
को
वा दरिद्रो हि विशाल तृष्णः
श्रीमांश्च
को यस्य समस्ति तोषः ।
जीवन्मृतो
कस्तु निरुद्यमो यः
कोवाऽमृतः
स्यात्सुखदा निराशा ॥ ५॥
प्रश्न
:- दरिद्र कौन है ?
उत्तर:-
भरी तृष्णा वाला |
प्रश्न
:- और धनवान् कौन है ?
उत्तर:-
जिसे सब तरह से संतोष है |
प्रश्न
:- (वास्तव में) जीते-जी मरा कौन है ?
उत्तर:-
जो पुरुषार्थहीन है |
प्रश्न
:- और अमृत क्या हो सकता है ?
उत्तर:-
सुख देने वाली निराशा (आशा से रहित होना)
पाशो
हि को यो ममताभिधानः
संमोहयत्येव
सुरेव का स्त्री ।
को
वा महान्धो मदनातुरो यो
मृत्युश्च
को वापयशः स्वकीयम् ॥ ६॥
प्रश्न
:- वास्तव में फाँसी क्या है ?
उत्तर:-
जो ‘मैं’
और ‘मेरापन’ है |
प्रश्न
:- मदिरा की तरह क्या चीज निश्चय ही मोहित कर देती है ?
उत्तर:-
नारी ही |
प्रश्न
: - और बड़ा भारी अन्धा कौन है ?
उत्तर:-जो
कामवश व्याकुल है |
प्रश्न
:- मृत्यु क्या है ?
उत्तर:-
अपनी अपकीर्ति |
को
वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा
शिष्यस्तु
को यो गुरु भक्त एव ।
को
दीर्घ रोगो भव एव साधो
किमौषधिं
तस्य विचार एव ॥ ७॥
प्रश्न
:- गुरु कौन है ?
उत्तर:-जो
केवल हित का ही उपदेश करने वाला है |
प्रश्न
:- शिष्य कौन है ?
उत्तर:-जो
गुरु का भक्त है वही |
प्रश्न
:- बड़ा भारी रोग क्या है ?
उत्तर:-
हे साधो ! बार-बार जन्म लेना ही |
प्रश्न
:- उसकी दवा क्या है ?
उत्तर:-परमात्मा
के स्वरूप का मनन ही |
किं
भूषणाद्भूषणमस्ति शीलं
तीर्थं
परं किं स्वमनो विशुद्धम् ।
किमत्र
हेयं कनकं च कान्ता
श्राव्यं
सदा किं गुरुवेदवाक्यम् ॥ ८॥
प्रश्न
:- भूषणों में उत्तम भूषण क्या है ?
उत्तर
:- उत्तम चरित्र |
प्रश्न
:- सबसे उत्तम तीर्थ क्या है ?
उत्तर:-
अपना मन जो विशेषरूप से शुद्ध किया हो |
प्रश्न
:- इस संसार में त्यागने योग्य क्या है ?
उत्तर:-
काञ्चन और कामिनी |
प्रश्न
:- सदा(मन लगाकर) सुनने योग्य क्या है ?
उत्तर:-
वेद और गुरु का वचन |
के
हेतवो ब्रह्म गतेस्तु सन्ति
सत्सङ्गतिर्दानविचार
तोषाः ।
के
सन्ति सन्तोऽखिल वीतरागा
अपास्तमोहाः
शिवतत्त्वनिष्ठाः ॥ ९॥
प्रश्न
:- परमात्मा की प्राप्ति के क्या क्या साधन हैं ?
उत्तर:-
सत्संग, सात्त्विक दान, परमेश्वर के स्वरूप का मनन और संतोष |
प्रश्न
:- महात्मा कौन हैं ?
उत्तर:-
सम्पूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो
गयी है, जिनका अज्ञान नाश हो चुका है और
जो कल्याणरूप परमात्म-तत्त्व में स्थित हैं |
को
वा ज्वरः प्राणभृतां हि चिन्ता
मूर्खोऽस्ति
को यस्तु विवेकहीनः ।
कार्या
मया का शिव विष्णु भक्तिः
किं
जीवनं दोष विवर्जितं यत् ॥ १०॥
प्रश्न
:- प्राणियों के लिए वास्तव में ज्वर क्या है ?
उत्तर:-
चिंता |
प्रश्न
:- मूर्ख कौन है ?
उत्तर:-
जो विचारहीन है |
प्रश्न
:- करने योग्य प्यारी क्रिया क्या है ?
उत्तर:-
शिव और विष्णु की भक्ति |
प्रश्न
:- वास्तव में जीवन कौन सा है ?
उत्तर:-
जो सर्वथा निर्दोष है |
विद्या
हि का ब्रह्म गति प्रदा या
बोधो
हि को यस्तु विमुक्ति हेतुः ।
को
लाभ आत्मावगमो हि यो वै
जितं
जगत् केन मनो हि येन ॥ ११॥
प्रश्न
:- वास्तव में विद्या कौन सी है ?
उत्तर:-
जो परमात्मा को प्राप्त करा देने वाली है |
प्रश्न
:- वास्तविक ज्ञान क्या है ?
उत्तर:-
जो (यथार्थ) मुक्ति का कारण है |
प्रश्न
:- यथार्थलाभ क्या है ?
उत्तर:-
जो परमात्मा की प्राप्ति है वही |
प्रश्न
:- जगत को किसने जीता ?
उत्तर:-
जिसने मन को जीता |
शूरान्महा
शूरतमोऽस्ति को वा
मनोज
बाणैर्व्यथितो न यस्तु ।
प्राज्ञोतिधीरश्च
समस्तु को वा
प्राप्तो
न मोहं ललना कटाक्षैः ॥ १२॥
प्रश्न
:- वीरों में सबसे बड़ा वीर कौन है ?
उत्तर:-
जो कामबाणों से पीड़ित नहीं होता |
प्रश्न
:- बुद्धिमान्, समदर्शी और धीर पुरुष कौन है ?
उत्तर:-
जो स्त्रियों के कटाक्षों से मोह को प्राप्त न हो |
विषाद्विषं
किं विषयाः समस्ता
दुःखी
सदा को विषयानुरागी ।
धन्योऽस्ति
को यस्तु परोपकारी
कः
पूजनीयो शिवतत्त्वनिष्ठः ॥ १३॥
प्रश्न
:- विष से भी भारी विष क्या है ?
उत्तर:-
सारे विषयभोग |
प्रश्न
:- सदा दु:खी कौन है ?
उत्तर:-
जो संसार के भोगों में आसक्त है |
प्रश्न
:- और धन्य कौन है ?
उत्तर:- जो परोपकारी है |
प्रश्न
:- पूजनीय कौन है ?
उत्तर:-
कल्याणरूप परमात्मतत्त्व में स्थित महात्मा |
सर्वास्ववस्थास्वपि
किं न कार्यं
किंवा
विधेयं विदुषा प्रयत्नात् ।
स्नेहं
च पापं पठनं च धर्मः
संसारमूलं
हि किमस्ति चिन्ता ॥ १४॥
प्रश्न
:- सभी अवस्थाओं में विद्वानों को बड़े जतन से क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना
चाहिए ?
उत्तर:-
संसार से स्नेह और पाप नहीं करना तथा सद्ग्रन्थों
का पठन और धर्म का पालन करना चाहिए |
प्रश्न
:- संसार की जड़ क्या है ?
उत्तर:-
(उसका ) चिन्तन ही |
विज्ञान्महाविज्ञतमोऽस्ति
को वा
नार्या
पिशाच्या न च वञ्चितो यः ।
का
शृङ्खला प्राणभृतां हि नारी
दिव्यं
व्रतं किं च समस्त दैन्यम् ॥ १५॥
प्रश्न
:- समझदारों में सबसे अच्छा समझदार कौन है ?
उत्तर:-
जो स्त्रीरूप पिशाचिनी से नहीं ठगा गया है |
प्रश्न
:- प्राणियों के लिए साँकल क्या है ?
उत्तर:-
नारी ही |
प्रश्न
:- श्रेष्ठ व्रत क्या है ?
उत्तर:-
पूर्णरूप से विनयभाव |
ज्ञातुं
न शक्यं हि किमस्ति सर्वै-
र्योषिन्मनो
यच्चरितं तदीयम् ।
का
दुस्त्यजा सर्वजनैर्दुराशा
विद्याविहीनः
पशुरस्ति को वा ॥ १६॥
प्रश्न
:- सब किसी के लिये क्या जानना सम्भव नहीं है ?
उत्तर:-
स्त्री का मन और उसका चरित्र |
प्रश्न:-
सब लोगों के लिए क्या त्यागना अत्यंत कठिन है ?
उत्तर:-
बुरी वासना (विषयभोग और पाप की इच्छाएं)
प्रश्न
:- पशु कौन है ?
उत्तर:-
जो सद्विद्या से रहित (मूर्ख) है |
वासो
न सङ्गः सह कैर्विधेयो
मूर्खैश्च
नीचैश्च खलैश्च पापैः ।
मुमुक्षुणा
किं त्वरितं विधेयं
सत्सङ्गतिर्निर्ममतेश
भक्तिः ॥ १७॥
प्रश्न
:- किन किन के साथ निवास और संग नहीं करना चाहिए ?
उत्तर:-
मूर्ख, नीच, दुष्ट और पापियों के साथ |
प्रश्न
:- मुक्ति चाहने वालों को तुरंत क्या करना चाहिए ?
उत्तर:-
सत्संग, ममता का त्याग और परमेश्वर की भक्ति |
लघुत्व
मूलं च किमर्थितैव
गुरुत्व
बीजं यदयाचनं किम् ।
जातो
हि को यस्य पुनर्न जन्म
को
वा मृतो यस्य पुनर्न मृत्युः ॥ १८॥
प्रश्न
:- छोटेपन की जड़ क्या है ?
उत्तर:-
याचना ही |
प्रश्न
:- बड़प्पन की जड़ क्या है ?
उत्तर:-
कुछ भी न मांगना |
प्रश्न
:- किसका जन्म सराहनीय है ?
उत्तर:-
जिसका फिर जन्म न हो |
प्रश्न
:- किसकी मृत्यु सराहनीय है ?
उत्तर:-
जिसकी फिर मृत्यु नहीं होती |
मूकोऽस्ति
को वा बधिरश्च को वा
वक्तुं
न युक्तं समये समर्थः ।
तथ्यं
सुपथ्यं न शृणोति वाक्यं
विश्वासपात्रं
न किमस्ति नारी ॥ १९॥
प्रश्न
:- गूंगा कौन है ?
उत्तर:-
जो समय पर उचित वचन कहने में समर्थ नहीं
है |
प्रश्न
:- और बहिरा कौन है ?
उत्तर:-
जो यथार्थ और हितकर वचन नहीं सुनता |
प्रश्न
:- विश्वास के योग्य कौन नहीं है ?
उत्तर:-
नारी |
तत्त्वं
किमेकं शिवमद्वितीयं
किमुत्तमं
सच्चरितं यदस्ति ।
त्याज्यं
सुखं किं स्त्रियमेव सम्यग्
देयं
परं किं त्वभयं सदैव ॥ २०॥
प्रश्न
:- एक तत्त्व क्या है ?
उत्तर:-
अद्वितीय कल्याण-तत्त्व(परमात्मा) |
प्रश्न
:- सबसे उत्तम क्या है ?
उत्तर:-
जो उतम आचरण है |
प्रश्न
:- कौन सा सुख तज देना चाहिए ?
उत्तर:-
सब प्रकार से स्त्री सुख ही |
प्रश्न
:- देने योग्य उत्तम दान क्या है ?
उत्तर:-
सदा अभय ही |
शत्रोर्महाशत्रु
तमोऽस्ति को वा
कामःसकोपानृत
लोभतृष्णः ।
न
पूर्यते को विषयैः स एव
किं
दुःखमूलं ममताभिधानम् ॥ २१॥
प्रश्न
:- शत्रुओं में सबसे बड़ा भारी शत्रु कौन है ?
उत्तर:-
क्रोध, झूठ, लोभ और तृष्णासहित काम |
प्रश्न
:- विषयभोगों से कौन तृप्त नहीं होता ?
उत्तर:-
वही काम |
प्रश्न
:- दु:ख की जड़ क्या है ?
उत्तर:-
ममता नामक दोष |
किं
मण्डनं साक्षरता मुखस्य
सत्यं
च किं भूतहितं सदैव ।
किं
कर्म कृत्वा न हि शोचनीयं ।
कामारि
कंसारि समर्चनाख्यम् ॥ २२॥
प्रश्न
:- मुख का भूषण क्या है ?
उत्तर:-
विद्वत्ता |
प्रश्न
:- सच्चा कर्म क्या है ?
उत्तर:-
सदा ही प्राणियों का हित करना |
प्रश्न
:- कौन सा कर्म करके पछताना नहीं पड़ता ?
उत्तर:-
भगवान् श्रीकृष्ण और शिव का पूजनरूप कर्म |
कस्यास्ति
नाशे मनसो हि मोक्षः
क्व
सर्वथा नास्ति भयं विमुक्तौ ।
शल्यं
परं किं निज मूर्खतैव
के
के ह्युपास्या गुरुदेववृद्धाः ॥ २३॥
प्रश्न
:- किसके नाश में मोक्ष है ?
उत्तर:-मन
के ही |
प्रश्न
: - किसमें सर्वथा भय नहीं है ?
उत्तर:-
मोक्ष में |
प्रश्न
:- सबसे अधिक चुभने वाली चीज कौन चीज है ?
उत्तर:-
अपनी मूर्खता ही |
प्रश्न
:- उपासना योग्य कौन कौन हैं ?
उत्तर:-
देवता, गुरु और वृद्ध |
उपस्थिते
प्राणहरे कृतान्ते
किमाशु
कार्यं सुधिया प्रयत्नात् ।
वाक्कायचित्तैः
सुखदं यमघ्नं
मुरारि
पादाम्बुजचिन्तनं च ॥ २४॥
प्रश्न
:- प्राण हरने वाले काल के उपस्थित होने पर अच्छी बुद्धि वालों को बड़े जतन से
तुरंत क्या करना चाहिए ?
उत्तर:- सुख देने वाले और मृत्यु का नाश करने वाले
भगवान् मुरारि के चरण-कमलों का तन, मन, वचन से चिन्तन करना |
के
दस्यवः सन्ति कुवासनाख्याः
कः
शोभते यः सदसि प्रविद्यः ।
मातेव
का या सुखदा सुविद्या
किमेधते
दान वशात्सुविद्या ॥ २५॥
प्रश्न
:- डाकू कौन है ?
उत्तर:-
बुरी वासनाएं |
प्रश्न
:- सभा में शोभा कौन पाता है ?
उत्तर:-जो
अच्छा विद्वान है |
प्रश्न
:- माता के समान सुख देने वाली कौन है ?
उत्तर:-उत्तम
विद्या |
प्रश्न
:- देने से क्या बढ़ती है ?
उत्तर:-अच्छी
विद्या |
कुतो
हि भीतिः सततं विधेया
लोकापवादाद्भव
काननाच्च ।
को
वातिबन्धुः पितरश्च के वा
विपत्सहायः
परिपालका ये ॥ २६॥
प्रश्न
:- निरन्तर किससे डरना चाहिए ?
उत्तर:-लोकनिन्दा
से और संसार रूपी वन से |
प्रश्न
:- अत्यंत प्यारा बन्धु कौन है ?
उत्तर:-जो
विपत्ति में सहायता करे |
प्रश्न
:- और पिता कौन है ?
उत्तर:-जो
सब प्रकार से पालन-पोषण करे |
बुद्ध्वा
न बोध्यं परिशिष्यते किं
शिवप्रसादं
सुख बोध रूपम् ।
ज्ञाते
तु कस्मिन् विदितं जगत्स्या-
त्सर्वात्मके
ब्रह्मणि पूर्ण रूपे ॥ २७॥
प्रश्न
:- क्या समझने के बाद कुछ भी समझना बाकी नहीं रहता ?
उत्तर:-शुद्ध
विज्ञान, आनन्दघन कल्याणरूप परमात्मा को |
प्रश्न
:- किसको जान लेने पर (वास्तव में) जगत् जाना जाता है ?
उत्तर:-सर्वात्मरूप
परिपूर्ण ब्रह्म के स्वरूप को |
किं
दुर्लभं सद्गुरुरस्ति लोके
सत्सङ्गतिर्ब्रह्म
विचारणा च ।
त्यागो
हि सर्वस्य निजात्म बोधः
को
दुर्जयः सर्व जनैर्मनोजः ॥ २८॥
प्रश्न
:- संसार में दुर्लभ क्या है ?
उत्तर:-सद्गुरु,
सत्संग, ब्रह्म-विचार, सर्वस्व का त्याग और कल्याणरूप परमात्मा का ज्ञान |
प्रश्न
:- सब के लिए क्या जीतना कठिन है ?
उत्तर:-कामदेव
|
पशोः
पशुः को न करोति धर्मं
प्राधीतशास्त्रोऽपि
न चात्मबोधः ।
किं
तद्विषं भाति सुधोपमं स्त्री
के
शत्रवो मित्रवदात्मजाद्याः ॥ २९॥
प्रश्न
:- पशुओं से भी बढ़कर पशु कौन है ?
उत्तर:-शास्त्र
का खूब अध्ययन करके जो धर्म पालन नहीं करता और जिसे आत्मज्ञान नहीं हुआ |
प्रश्न
:- वह कौन सा विष है जो अमृत सा जान पड़ता है ?
उत्तर:-
नारी |
प्रश्न
:- शत्रु कौन है जो मित्र सा लगता है ?
उत्तर:-पुत्र
आदि |
|
विद्युच्चलं
किं धन यौवनायु-
र्दानं
परं किं च सुपात्रदत्तम् ।
कण्ठंगतेरप्यसुभिर्न
कार्यं
किं
किं विधेयं मलिनं शिवार्चा ॥ ३०॥
प्रश्न
:- बिजली की तरह क्षणिक क्या है ?
उत्तर:-धन,
यौवन और आयु |
प्रश्न
:- सबसे उतम दान कौन सा है ?
उत्तर:-जो
सुपात्र को दिया जाये |
प्रश्न
:- कंठगत प्राण होने पर भी क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए ?
उत्तर:-पाप
नहीं करना चाहिए और कल्याणरूप परमात्मा की पूजा करनी चाहिए |
अहर्निशं
किं परिचिन्तनीयं
संसार
मिथ्यात्वशिवात्म तत्त्वम् ।
किं
कर्म यत्प्रीतिकरं मुरारेः
क्वास्था
न कार्या सततं भवाब्धौ ॥ ३१॥
प्रश्न
:- रात-दिन विशेषरूप से रूप से क्या चिन्तन करना चाहिए ?
उत्तर:-संसार
का मिथ्यापन और कल्याणरूप परमात्मा का तत्त्व
|
प्रश्न
:- वास्तव में कर्म क्या है ?
उत्तर:-जो
भगवान् श्रीकृष्ण को प्रिय हो |
प्रश्न
:- सदैव किस में विश्वास नहीं करना
चाहिए ?
उत्तर:-संसार-समुद्र
में |
कण्ठं
गता वा श्रवणं गता वा
प्रश्नोत्तराख्या
मणिरत्नमाला ।
तनोतु
मोदं विदुषां सुरम्यं
रमेश
गौरीशकथेव सद्य: ॥ ३२॥
(
यह प्रश्नोत्तर नाम के मणिरत्नमाला कंठ में या कानों में जाते ही लक्ष्मीपति
भगवान् विष्णु और उमापति भगवान् शंकर की
कथा की तरह विद्वानों के सुन्दर आनन्द को बढ़ावे )
जय
श्री हरि !!!!